मथुरा.सवांददाता. वैश्विक महामारी कोविड-19 से त्रस्त आर्थिक तंगी की शिकार सारी दुनिया में आर्थिक मन्दी से निपटने पर गम्भीर चिन्तन हो रहा है। उपाय किये जा रहे हैं। , योजनायें बन रही हैं। देश व प्रदेश के जिम्मेदार योजनाओं को कार्यरूप देने में लगे हुए हैं। इसी प्रसंग में जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था, मथुरा के मुखिया पूज्य पंकज महाराज ने अपने एक सन्देश में कहा है। कि वैश्विक आपदा के इस नाजुक दौर में जनशक्ति, मेघाशक्ति, योग्यता शक्ति, युवा क्षमता शक्ति का बुद्धिमानी से प्रयोग करना चाहिए। बेकारी की महामारी से देश को और देश की जनता को उबारना बहुत बड़ी चुनौती है। आर्थिक तरक्की जरूरी है तो चारित्रिक तरक्की अति जरूरी है। अच्छे संस्कार ही देश का भविष्य निर्माण करते हैं। उत्तम चरित्र की संभावनायें शाकाहार और नशामुक्ति अपनाने से ही संभव हैं। जबकि माँसाहार और नशाखोरी नैतिक पतन, क्रोध, हिंसा और उन्माद की ओर ले जाते हैं। भारत जैसे विशुद्ध धार्मिक और नितान्त अध्यात्मवादी देश में माँसाहार और नशाखोरी को बढ़ावा देना सर्वथा अनुचित है। कर्णधारों को इस पर गम्भीरता से सोचना चाहिए। महामारी ही नहीं अनेक प्रकार के प्राकृतिक प्रकोपों से बचने का कारगर उपाय शाकाहार और मद्यनिषेध है।
यह जानकारी देते हुए। संस्था के महामंत्री बाबूराम यादव ने बताया कि। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों के सम्बन्ध में 70 से 80 के दशक में परम सन्त बाबा जयगुरुदेव महाराज ने आगाह किया था। उन्होंने करोड़ों लोगों का वैचारिक और हृदय परिवर्तन करके प्रभु के भजन में लगाया। उनके मिशन को पूज्य पंकज महाराज बढ़ाने में लगे हुए हैं। भारत जैसे धार्मिक देश में महात्माओं की वाणियों में अनेक समस्याओं के समाधान छिपे हैं। आर्थिक मन्दी से उबरने का सूत्र रामचरित मानस में वर्णित है। कहा गया है कि।
जिमि सरिता सागर मँह जाँही, यद्यपि ताहि कामना नाहीं।
तिमि सुख सम्पति विनहिं बोलाये, धर्मशील पहिं जाय सुभायें।।
धर्मशील होना किसी आस्था, मत, रीति या परम्परा का टेकी होना नहीं, विशुद्ध मानवीय गुणों जैसे-सत्य, अहिंसा, परोपकार, मानव-सेवा, प्रेम आदि को धारण करने, विकास करने, करवाने से तात्पर्य रखता है। भारतीय धर्म ग्रन्थों व उनके प्रतिपादक महापुरुषों द्वारा चरित्र को मानव-धर्म की सबसे बड़ी पूँजी कहा गया है। चरित्र-उत्थान ही राष्ट्र-उत्थान की नींव है।
यह जानकारी देते हुए। संस्था के महामंत्री बाबूराम यादव ने बताया कि। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों के सम्बन्ध में 70 से 80 के दशक में परम सन्त बाबा जयगुरुदेव महाराज ने आगाह किया था। उन्होंने करोड़ों लोगों का वैचारिक और हृदय परिवर्तन करके प्रभु के भजन में लगाया। उनके मिशन को पूज्य पंकज महाराज बढ़ाने में लगे हुए हैं। भारत जैसे धार्मिक देश में महात्माओं की वाणियों में अनेक समस्याओं के समाधान छिपे हैं। आर्थिक मन्दी से उबरने का सूत्र रामचरित मानस में वर्णित है। कहा गया है कि।
जिमि सरिता सागर मँह जाँही, यद्यपि ताहि कामना नाहीं।
तिमि सुख सम्पति विनहिं बोलाये, धर्मशील पहिं जाय सुभायें।।
धर्मशील होना किसी आस्था, मत, रीति या परम्परा का टेकी होना नहीं, विशुद्ध मानवीय गुणों जैसे-सत्य, अहिंसा, परोपकार, मानव-सेवा, प्रेम आदि को धारण करने, विकास करने, करवाने से तात्पर्य रखता है। भारतीय धर्म ग्रन्थों व उनके प्रतिपादक महापुरुषों द्वारा चरित्र को मानव-धर्म की सबसे बड़ी पूँजी कहा गया है। चरित्र-उत्थान ही राष्ट्र-उत्थान की नींव है।
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