google.com, pub-6037649116484233, DIRECT, f08c47fec0942fa0 》 ― *आज की संपादकीय* –》 ​*दिनांक 19 नवंबर 2019 मंगलवार* *संपादकीय अपडेट वे टू लक्ष्य न्यूज़ पर​*
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》 ― *आज की संपादकीय* –》 ​*दिनांक 19 नवंबर 2019 मंगलवार* *संपादकीय अपडेट वे टू लक्ष्य न्यूज़ पर​*

》 ― *आज की संपादकीय* –》
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​संपादक​
​दैनिक वे टू लक्ष्य ​
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  आज का विषय - _*गोरक्षा के नाम पर हत्याओं का सिलसिला आखिर थम क्यों नहीं रहा?*_

_*हापुड़ में गोरक्षा के नाम पर हुई हत्या का मामला उत्तर प्रदेश सरकार के लिए अपनी प्रशासनिक क्षमता साबित करने की परीक्षा है.*_
           _*सोमवार को उत्तर प्रदेश के हापुड़ में गोरक्षा के नाम पर भीड़ ने एक और व्यक्ति की हत्या कर दी है. यहां के पिलखुआ गांव में एक पशु कारोबारी कासिम को दिन-दहाड़े उन्मादी भीड़ ने निशाना बनाया और इसके बाद की घटनाएं उसी भयावह सिलसिले के मुताबिक आगे बढ़ी जैसा इन मामलों में अब तक होता रहा है. एफआईआर में गाय का जिक्र नहीं है और पुलिस ने इस हत्या के लिए कुछ अज्ञात बाइक सवारों को जिम्मेदार माना है. पुलिस के मुताबिक बाइकवालों और कासिम के बीच रास्ते पर आगे निकलने को लेकर झगड़ा हुआ था, जिसमें कासिम की हत्या कर दी गई._

      _हालांकि स्थानीय लोगों, पीड़ित के परिजनों और आरोपितों के बयानों के साथ-साथ इस घटना से जुड़ा एक वीडियो इशारा करता है* कि यह मामला भी कथित गोरक्षकों द्वारा की गई हत्या का ही है. हालांकि पुलिस पर सवाल सिर्फ इसीलिए नहीं उठ रहा है. बाद में इस घटना से जुड़ी एक तस्वीर भी सार्वजनिक हुई जिसमें देखा जा सकता है कि कुछ लोग पुलिस की मौजूदगी में खून-से लथपथ कासिम को तकरीबन घसीटते हुए ले जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस को इस तस्वीर के कारण सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी है._

     _*हापुड़ में भीड़ द्वारा की गई यह हत्या (मॉब लिंचिंग) हमें एक बार फिर याद दिलाती है* कि असहिष्णुता और गाय के नाम पर हत्या को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता. उत्तर प्रदेश शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मोर्चे पर संकट सामना करना कर रहा है, लेकिन बीते कुछ अरसे में यहां जानबूझकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया गया. इस बीच यहां सरकार ने गोवध के खिलाफ जो सख्त अभियान चलाया, उससे गोरक्षक भी उत्साहित हुए हैं._

     _*गाय के नाम पर हत्या का पहला मामला जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा, वह भी उत्तर प्रदेश का ही था.* यह सितंबर, 2015 की बात है जब दादरी में मोहम्मद अखलाक को भीड़ ने इस शक में पीट-पीटकर मार डाला था कि उसके घर में गोमांस रखा हुआ है. इसके बाद फिर ऐसी ही घटनाएं दूसरे राज्यों में भी हुईं. उदाहरण के लिए जुलाई, 2016 में गाय की खाल उतारने के आरोप में गुजरात के उना में कुछ दलितों के साथ मारपीट की गई थी और अप्रैल, 2017 में अलवर में पहलू खान को कथित गोरक्षकों ने इतना पीटा था कि अस्पताल में भर्ती कराए जाने के बावजूद उनकी मौत हो गई._

    _*इन घटनाओं के ज्यादातर पीड़ित मुसलमान हैं* या दलित और ज्यादातर मामलों पुलिस दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पीड़ितों के परिजनों को ही परेशान करती है या उन्हीं के खिलाफ केस दर्ज कर लेती है._

     _*हिंदुओं की बड़ी आबादी गाय को पवित्र मानती है और उसकी पूजा भी करती है* और ऐसा सदियों से चला आ रहा है. वहीं गाय के नाम पर असहिष्णुता का प्रदर्शन या हिंसा की घटनाएं पहले भी सामने आती रही हैं, लेकिन इन घटनाओं में जो बढ़ोत्तरी और आरोपितों को मिल रही रियायत हाल के समय में देखी जा रही है, वह अभूतपूर्व है._

      _*उत्तर प्रदेश सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि कासिम को न सिर्फ इंसाफ मिले*, बल्कि इस मामले में इंसाफ होता हुआ दिखे भी. पिछले दिनों ऐसी घटनाओं के आरोपितों को रियायत मिलती रही है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं होना चाहिए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि गाय के नाम पर होने वाली हत्याओं का यह दुष्चक्र टूटे. अगर ऐसा नहीं हो पाता तो हापुड़ में हुई यह हत्या इस सरकार के कार्यकाल पर दाग बन जाएगी, जिससे पीछा छुड़ाना उसके लिए मुश्किल होगा. (स्रोत)_

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