आगरा! लॉक डाउन में देशभर के पत्रकारों की दयनीय हालत की ओर आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं। कोरोना महामारी के प्रकोप से देशवासियों को बचाने के लिए आपके निर्देश पर जारी लॉकडाउन के दौरान डॉक्टर, पैरा मेडिकल स्टाफ, पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों और कर्मचारियों की तरह ही मीडियाकर्मी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। कई स्थानों पर सुविधाओं के अभाव में अखबार और चैनल को जनता को महामारी से बचने के उपायों की जानकारी देने के साथ ही तमाम सूचनाएं उपलब्ध करा रहे हैं। कोरोना महामारी से देशवासियों को बचाने और उपचार के तरीके बताने में मीडिया ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कोरोना महामारी के प्रकोप का असर चैनल और अखबारों पर भी पड़ा है। क्षेत्रीय भाषाओं के चैनल और अखबारों पर आर्थिक हालत खराब हुई है। कुछ बड़े चैनलों की टीआरपी बढ़ने के साथ ही उनकी आय बढ़ी है लेकिन छोटे चैनल और अखबारों की हालत खराब हुई है। इस कारण बहुत बड़ी संख्या में पत्रकार भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। देश के ज्यादातर जिलों और ग्रामीण इलाकों में दो हजार रुपये से पांच हजार रुपये तक पर काम करने वाले संवाददाताओं की स्थिति बहुत खराब है।
ज्यादातर अखबारों ने डीएवीपी और राज्य सरकारों से विज्ञापन का भुगतान न होने पर वेतन देने से भी हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे जिलों और ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों के साथ ही राज्यों की राजधानियों में कार्यरत पत्रकारों के परिवारों के समक्ष भीषण संकट पैदा हो गया है।
देश में 70 प्रतिशत पत्रकार जिलों और ग्रामीण इलाकों में काम करते हैं। कहने को इन्हें अंशकालिक कहा जाता है पर ये पूरे दिन चैनल या अखबारों के लिए काम करते हैं। कुछ अवसरों पर विज्ञापन लाने का काम भी करते हैं, जिनके एवज में कमीशन मिलता है तो घर में राशन आ जाता है। लॉकडाउन के कारण सभी गतिविधियों पर लगी रोक के अखबारों को विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं। कई राज्यों में जिलों से छपने वाले अखबार बंद होने से बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए पत्रकारों के परिवारों का जीवन संकट में पड़ गया है। कोरोना महामारी का प्रकोप अखबारों पर बहुत पड़ा है। बड़ी संख्या में अखबार बन्द हो गए हैं। बड़े बड़े अखबार 8 से 12 पन्ने के निकल रहे हैं। कि देश के बड़े बड़े मीडिया घरानों ने भी आर्थिक हालत खराब बताते हुए कर्मचारियों को निकालना शुरु कर दिया है। एक तरफ आपने किसी भी उद्योग या संस्थानों से को कर्मचारियों को न निकालने की अपील करते हुए वेतन देने को कहा है। केंद्रीय श्रम मंत्री ने कर्मचारियों को वेतन न देने वाले संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात की है। हैरानी की बात है कि आपकी अपील और केंद्रीय श्रम मंत्री के निर्देश के बावजूद अखबारों और चैनलों से कर्मचारियों को निकाला जा रहा है। ऐसे मीडिया घरानों के खिलाफ सरकार को जल्दी से जल्दी से कार्रवाई करनी चाहिए। केंद्र और राज्य सरकार भुखमरी के शिकार पत्रकारों को बचाने के लिए कुछ कदम उठाए जाएं। एनयूजे के सदस्य असली पत्रकारों की पहचान के लिए सहयोग देने का तैयार हैं। हम आपकी जानकारी में लाने चाहते हैं कि कई स्थानों पर लोग जनता के साथ आर्थिक तौर पर कमजोर पत्रकारों की मदद कर रहे हैं पर ज्यादा समय नहीं कर पाएंगे।
उत्तर प्रदेश के रहने वाले कई पत्रकारों के पास खाने के लिए राशन नहीं है। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में कई वर्षों के काम कर रहे पत्रकारों की हालत भी वेतन न मिलने के कारण दयनीय हो गई है। पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में अखबारों और चैनलों में छंटनी के कारण बेरोजगार हुए पत्रकार स्वतंत्र लेखन कर रहे थे। अखबारों ने अब पन्ने कम करते हुए उनकी सेवा लेने से इंकार कर दिया। उनका पिछला बकाये का भुगतान भी किया जा रहा है। ऐसी हालत का सामना कई वरिष्ठ पत्रकारों को करना पड़ रहा है। ऐसे लोग किसी के सामने हाथ भी नहीं फैला सकते हैं। आर्थिक संकट के कारण उनका जीवन बहुत संकट में है। बड़ी संख्या में जिलों में काम करने वाले और किराये पर मकान लेकर रहने वाले पत्रकारों के पास किराया चुकाने तक के पैसे नहीं है। उन्हें मकान मालिक मकान खाली करने की धमकी दे रहे हैं। आपसे अनुरोध है कि जिलों और ग्रामीण इलाकों में कार्य करने वाले स्थानीय पत्रकारों के राशन की व्यवस्था करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिए। प्रधानमंत्री जी आप अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में स्थानीय पत्रकारों से जुड़े रहे है और उनकी समस्या जानते हैं। सरकारों की तरफ डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य कर्मचारियों के लिए कोरोना महामारी के प्रकोप में जान जाने पर 50 लाख का बीमा देने की घोषणा की गई है। इस हालत में जान गंवाने वाले पत्रकारों के लिए 50 लाख बीमा घोषित किया जाए। आपसे अनुरोध है कि आर्थिक तौर पर कमजोर पत्रकारों को राहत देने के लिए 50 हजार रुपये प्रति परिवार सहायता देने की घोषणा की जाए। बुजुर्ग पत्रकारों की हालत तो बहुत ही दयनीय है। बीमारी की हालत में उनके पास इलाज कराने के लिए पैसे नहीं है। अस्पतालों में उनके इलाज की व्यवस्था कराने के निर्देश देने का कष्ट करें।
ज्यादातर अखबारों ने डीएवीपी और राज्य सरकारों से विज्ञापन का भुगतान न होने पर वेतन देने से भी हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे जिलों और ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों के साथ ही राज्यों की राजधानियों में कार्यरत पत्रकारों के परिवारों के समक्ष भीषण संकट पैदा हो गया है।
देश में 70 प्रतिशत पत्रकार जिलों और ग्रामीण इलाकों में काम करते हैं। कहने को इन्हें अंशकालिक कहा जाता है पर ये पूरे दिन चैनल या अखबारों के लिए काम करते हैं। कुछ अवसरों पर विज्ञापन लाने का काम भी करते हैं, जिनके एवज में कमीशन मिलता है तो घर में राशन आ जाता है। लॉकडाउन के कारण सभी गतिविधियों पर लगी रोक के अखबारों को विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं। कई राज्यों में जिलों से छपने वाले अखबार बंद होने से बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए पत्रकारों के परिवारों का जीवन संकट में पड़ गया है। कोरोना महामारी का प्रकोप अखबारों पर बहुत पड़ा है। बड़ी संख्या में अखबार बन्द हो गए हैं। बड़े बड़े अखबार 8 से 12 पन्ने के निकल रहे हैं। कि देश के बड़े बड़े मीडिया घरानों ने भी आर्थिक हालत खराब बताते हुए कर्मचारियों को निकालना शुरु कर दिया है। एक तरफ आपने किसी भी उद्योग या संस्थानों से को कर्मचारियों को न निकालने की अपील करते हुए वेतन देने को कहा है। केंद्रीय श्रम मंत्री ने कर्मचारियों को वेतन न देने वाले संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात की है। हैरानी की बात है कि आपकी अपील और केंद्रीय श्रम मंत्री के निर्देश के बावजूद अखबारों और चैनलों से कर्मचारियों को निकाला जा रहा है। ऐसे मीडिया घरानों के खिलाफ सरकार को जल्दी से जल्दी से कार्रवाई करनी चाहिए। केंद्र और राज्य सरकार भुखमरी के शिकार पत्रकारों को बचाने के लिए कुछ कदम उठाए जाएं। एनयूजे के सदस्य असली पत्रकारों की पहचान के लिए सहयोग देने का तैयार हैं। हम आपकी जानकारी में लाने चाहते हैं कि कई स्थानों पर लोग जनता के साथ आर्थिक तौर पर कमजोर पत्रकारों की मदद कर रहे हैं पर ज्यादा समय नहीं कर पाएंगे।
उत्तर प्रदेश के रहने वाले कई पत्रकारों के पास खाने के लिए राशन नहीं है। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में कई वर्षों के काम कर रहे पत्रकारों की हालत भी वेतन न मिलने के कारण दयनीय हो गई है। पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में अखबारों और चैनलों में छंटनी के कारण बेरोजगार हुए पत्रकार स्वतंत्र लेखन कर रहे थे। अखबारों ने अब पन्ने कम करते हुए उनकी सेवा लेने से इंकार कर दिया। उनका पिछला बकाये का भुगतान भी किया जा रहा है। ऐसी हालत का सामना कई वरिष्ठ पत्रकारों को करना पड़ रहा है। ऐसे लोग किसी के सामने हाथ भी नहीं फैला सकते हैं। आर्थिक संकट के कारण उनका जीवन बहुत संकट में है। बड़ी संख्या में जिलों में काम करने वाले और किराये पर मकान लेकर रहने वाले पत्रकारों के पास किराया चुकाने तक के पैसे नहीं है। उन्हें मकान मालिक मकान खाली करने की धमकी दे रहे हैं। आपसे अनुरोध है कि जिलों और ग्रामीण इलाकों में कार्य करने वाले स्थानीय पत्रकारों के राशन की व्यवस्था करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिए। प्रधानमंत्री जी आप अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में स्थानीय पत्रकारों से जुड़े रहे है और उनकी समस्या जानते हैं। सरकारों की तरफ डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य कर्मचारियों के लिए कोरोना महामारी के प्रकोप में जान जाने पर 50 लाख का बीमा देने की घोषणा की गई है। इस हालत में जान गंवाने वाले पत्रकारों के लिए 50 लाख बीमा घोषित किया जाए। आपसे अनुरोध है कि आर्थिक तौर पर कमजोर पत्रकारों को राहत देने के लिए 50 हजार रुपये प्रति परिवार सहायता देने की घोषणा की जाए। बुजुर्ग पत्रकारों की हालत तो बहुत ही दयनीय है। बीमारी की हालत में उनके पास इलाज कराने के लिए पैसे नहीं है। अस्पतालों में उनके इलाज की व्यवस्था कराने के निर्देश देने का कष्ट करें।
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